दिल्ली वालों की रविवार की सुबह रानी झांसी रोड के अनाज मंडी इलाके में लगी आग के साथ हुई। जैसे-जैसे दिन चढ़ने लगा लोगों की चीख पुकार के साथ मरने वालों का आंकड़ा भी बढ़ने लगा। अंधेरा होने तक इस हादसे में 43 लोगों की मौत हो चुकी थी। हादसे पर राजनीति भी शुरू हो गई थी। अब सवाल उठ रहे हैं कि रिहायशी इलाके में कैसे यह फैक्ट्री चल रही थी। इन्हें लाइसेंस किसने दिया। फैक्ट्री में फायर सेफ्टी के उपाय क्यों नहीं थे, वगैरह-वगैरह। लेकिन, जहां से ये सवाल उठ रहे हैं उन्हें यह भी याद रखना होगा कि इस इलाके में केवल यही एक फैक्ट्र्री नहीं चल रही है, बल्कि इस जैसी सैकड़ों फैक्ट्रियां यहां पर चल रही हैं। यह फैक्ट्रियां भाजपा और कांग्रेस की सरकार में भी यहां चल रही थीं।
यहां की बारीकियों को समझने और जानने वाले इससे बखूबी परिचित भी होंगे। इतने सघन आबादी वाले इलाकों में बिजली के तारों का जाल वर्षों से ऐसा ही बिछा है। लेकिन इसका अर्थ ये कतई नहीं है कि इनको सही नहीं किया जा सकता था। यहां पर और यहां की तरह दूसरे सघन इलाकों में रहने वाले लोग यह बखूबी जानते हैं कि फायर ब्रिग्रेड के वहां पहुंचने में कितनी जद्दोजहद करनी होती है। अक्सर इन इलाकों में हादसे के समय फायर ब्रिग्रेड पहुंच ही नहीं पाती है। वजह यहां की तंग गलियां और उसमें भी लोगों द्वारा अवैध कब्जा करना सबसे बड़ी समस्या होती है। इस बार भी यही वजह थी। इस हादसे में जितने लोग मारे गए उसमें सबसे अधिक 28 लोग बिहार से हैं। ये लोग रोजी-रोटी के जुगाड़ में यहां पर आए थे।हादसे के दौरान ही आग में फंसे लोगों ने अपनों को फोन भी करना शुरू कर दिया था।
जिस फैक्ट्री में यह हादसा घटा उससे एक दिन पहले ही यहां पर एक और इमारत में आग लगी थी। यहां का रास्ता बेहद तंग था। जिस बिल्डिंग में यह हादसा हुआ वह पांच मंजिला इमारत थी। यहां पर बच्चों के बैग बनाने का काम होता था। काम करने वाले ज्यादातर लोग इसी इमारत में ही रहते भी थे। जिस वक्त सुबह ये हादसा हुआ उस वक्त ज्यादातर मजदूर सोए हुए थे। अचानक आग ने विकराल रूप ले लिया। पड़ोस के एक 11 वर्षीय बच्चे ने जब कमरे में आग लगी देखी तो उसने दूसरे लोगों को शोर मचाकर उठाया। आनन-फानन में लोगों ने इमारत में फंसे लोगों की जान बचाने की कवायद भी शुरू की। इस कवायद में कुछ को बचा लिया गया तो कुछ की जान नहीं बचाई जा सकी। फायर ब्रिगेड कर्मियों ने भी अपनी जान पर खेलकर कई लोगों को बचाया। इनमें से एक राजेश शुक्ला भी थे। उन्होंने 11 लोगों की जान बचाई। इस दौरान वो खुद भी जख्मी हुए। दिल्ली के मंत्री समेत अन्य लोगों ने भी उनकी जमकर तारीफ की।