समय समय पर किए गए शोध और अध्ययनों के मुताबिक बच्चे में भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक स्थिरता काफी हद तक अपने अभिभावक के साथ बच्चे के रिश्ते पर निर्भर करता है. बच्चा मांबाप के जितने करीब होगा उस का व्यक्तित्व उतना ही संतुलित होगा. बच्चा आप के कितने करीब है इस बात का अंदाजा लगाने के लिए आप यह देखें कि परेशान या अपसेट होने की स्थिति में वह आप से खुलकर बातें करता है या नहीं? आप से हर बात शेयर करता है या नहीं? यदि नहीं तो स्पष्ट है अपने बच्चे के साथ आप का रिश्ता इतना गहरा नहीं जितना होना चाहिए. यानी आप अपने बच्चे के करीब नहीं है.
कुछ समय पहले अमेरिका के टेक्सास में प्रोफेसर मैथ्यू ए एंडर्सन द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार बचपन में अपने अभिभावक के साथ आप का रिश्ता कैसा रहा यह तथ्य बड़े होने पर आप की सेहत को प्रभावित करती है. बड़े होने के बाद उन लोगों में बीमारियों का खतरा ज्यादा होता है जिन्हें कम उम्र में अभिभावक से अधिक डांटफटकार मिली होती है. दरअसल जब बच्चे का अभिभावक के साथ रिश्ता मिठास भरा नहीं होता तो बच्चों में हेल्दी लाइफ़स्टाइल डेवलप नहीं हो पाती साथ ही इमोशनल और सोशल स्किल्स के मामले में भी वे पिछड़ जाते हैं.
अध्ययन के मुताबिक यदि अभिभावक और बच्चे के रिश्ते में खटास हो तो बच्चे का खाना ,पीना ,सोना और दूसरी गतिविधियां अनियमित हो जाती हैं. घर के संतुलित खाने के बजाय वह जंकफूड स्ट्रीटफूड और हाई फैट फूड ज्यादा लेने लगते हैं.
जब बच्चे बहुत दुखी हों , किसी वजह से चिंतित, क्रोधित, हतोत्साहित या हर्ट हो कर घर लौटे तो अक्सर मांबाप उन्हें दुखी या परेशान न होने की सीख देते हैं.
‘हतोत्साहित मत हो’, ‘ पागल न बनो’, ‘चिंता मत करो’ या ‘इस तरह क्यों सोच रहे हो’ जैसे वाक्य सुन कर बच्चे खुद में लज्जित महसूस करते हैं कि वे ऐसा क्यों महसूस कर रहे हैं. इस से वे और भी और भी हर्ट हो जाते हैं.
उन्हें महसूस होता है कि पेरेंट्स उन्हें नहीं समझ रहे. वे खुद को अकेला पाते हैं और अपनी बात खुल कर कह नहीं पाते. पर यह तरीका सही नहीं. आप उन की भावनाओं का सम्मान करें. भावनाएं कभी गलत नहीं होतीं. बेहतर होगा कि आप उन से हमदर्दी रखें. उन की भावनाओं को महसूस करें और तब अपनी बात कहें.
जैसे, मैं समझ रहा हूं, चिंता की बात है, तुम अपसेट हो, मैं तुम्हारी जगह होता तो ऐसे ही रिएक्ट करता,
मैं तुम्हे समझ सकता हूं, जैसे वाक्य आप के बच्चों को आप से कनेक्टेड महसूस कराते हैं. उन्हें एहसास होता है कि उन के अभिभावक उन्हें समझ रहे हैं. इससे वे अच्छा महसूस करने लगते हैं. वे अभिभावक से प्रौब्लम सौल्व करने में मदद लेने को इच्छुक हो उठते हैं. इस से बच्चों में सुरक्षा की भावना विकसित होती है और वे अभिभावक के साथ तार्किक रूप से सोचना शुरू कर देते हैं.
बच्चे को गाइडेंस चाहिए आर्डर नहीं
बच्चे के साथ दोस्ती का रिश्ता रखें. स्ट्रिक्ट पैरेंट की तरह हर समय औडर न दें. उन में किसी भी परिस्थिति को देखने और समझने का नजरिया विकसित करें. हर छोटीबड़ी समस्या की जड़ तक जाना और सही समाधान निकालना सिखाएं. उन्हें हर तरह से गाइड करें मगर जबरदस्ती कभी न करें. उन्हें क्या पढ़ना है, किस से दोस्ती रखनी है, क्या खाना है या किस से किस तरह का व्यवहार करना है, जैसे मसलों पर अपनी राय जरूर दें. मगर अंतिम फैसला बच्चों पर छोड़ें. इस से उन में आत्मविश्वास भी आएगा और आप के प्रति उन के मन में इज्जत भी बढ़ेगी.
प्यार से समझाएं मारपीट से नहीं
बच्चों पर हिंसा कतई उचित नहीं. प्यार से समझाने पर बच्चा किसी भी बात को सही तरीके से समझता है और अपनी गलती का एहसास करता है. उस के मन में आप के प्रति सम्मान की भावना भी कायम रहती है. वही आप यदि उस के साथ मारपीट का व्यवहार करेंगे डांट कर डराएंगे तो वह जिद्दी और बदमिजाज बनता जाएगा. आप का रिश्ता भी बुरी तरह प्रभावित होगा और बड़े हो कर वह मारपीट और हिंसा को अपना हथियार बना लेगा. इस तरह उस के व्यक्तित्व का नेगेटिव साइड उभर कर सामने आने लगेगा.
सकारात्मक सोच विकसित करें नकारात्मक नहीं
बच्चों को हमेशा सकारात्मक वातावरण दीजिए. आपकी बातों से उन्हें अहसास दिलाएं कि जीवन में सब कुछ संभव है और वे कुछ भी कर सकते हैं. बच्चों के आगे संभावनाओं का संसार खुला रखें. नकारात्मक पहलुओं से बच कर रहना सिखाएं.