पाल के नजदीक बैरसिया कसबे की शीतलनगर कालोनी के बाशिंदे किशोरीलाल बैरागी पेशे से ट्रक ड्राइवर हैं. उन की बड़ी खवाहिश थी कि बेटा विकास और दोनों बेटियां अनुष्का और निधि पढ़लिख कर कुछ बन जाएं और उन का नाम रोशन करें. इस बाबत उन्होंने बच्चों की पढ़ाईलिखाई में कोई ढील या कसर नहीं छोड़ी थी, जिस का नतीजा था कि 21 वर्षीया निधि बीएससी के आखिरी और 17 वर्षीया अनुष्का पहले साल में पढ़ रही थीं.
दोनों जवान होती बहनों से घर की खस्ता माली हालत छिपी नहीं थी. लिहाजा, उन्होंने एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया था. जो मामूली पगार उन्हें मिलती थी उस से वे अपना खर्च चला लेती थीं.
लेकिन बीती 31 जुलाई को दोनों ने घर में ही जहर खा कर खुदकुशी कर ली तो बैरसिया में सनाका खिंच गया. लोगों का लगाया यह अंदाजा गलत नहीं निकला कि जरूर लड़कों का चक्कर रहा होगा. दरअसल, हुआ यों था कि हादसे के दिन दोनों बहनें अपने बौयफ्रैंड्स के साथ घूमने चली गई थीं और शाम को देर से घर पहुंची थीं.
जवान होती लड़कियों की चिंता में डूबे किशोरीलाल को बेटियों का यह रवैया पसंद नहीं आया तो उन्होंने पिता का फर्ज निभाते हुए दोनों को डांट दिया. इस डांट से अनुष्का और निधि इतनी दुखी हुईं कि उन्होंने जिंदगी शुरू होने से पहले ही उसे खत्म करने का खतरनाक फैसला लेते जहर खा लिया जिस से दोनों की मौत हो गई.
क्या है दिक्कत
देखा जाए तो किशोरीलाल ने कुछ गलत नहीं किया था और दूसरे यानी आजकल के लिहाज से देखा जाए तो अनुष्का और निधि ने भी लड़कों से दोस्ती कर कोई संगीन गुनाह नहीं किया था क्योंकि बौयफ्रैंड आजकल अमूमन सभी लड़कियों के होते हैं.
फिर दिक्कत कहां है, यह बात न सम झना ही सारे फसाद और ऐसे दुखद हादसों की जड़ है. इस पर लड़कियों के साथसाथ मांबाप को भी संजीदगी से सोचविचार करना चाहिए जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. हुआ यों था कि जमाने की ऊंचनीच से वाकिफ किशोरीलाल इस बात से डर रहे थे कि बेटियां अभी नादान हैं और उन की उम्र पढ़नेलिखने की व कैरियर बनाने की है. दूसरी तरफ अनुष्का और निधि का सोचना यह था कि इस में कहां की नई बात है, आजकल तो हर किसी लड़की का बौयफ्रैंड होता है. इस का यह मतलब नहीं कि सभी गलत होती हैं और उन की मंशा खराब होती है.
दोनों अपनीअपनी जगह ठीक थे, लेकिन गलती लड़कियों की ज्यादा नजर आती है जिन्होंने एकतरफा सोचा और जाने क्यों यह नहीं सोचा कि मांबाप जो कह रहे हैं वह उन के भले के लिए है. खुदकुशी कर घरवालों को जिंदगीभर के लिए दुख के समंदर में ढकेल दिया है.
किशोरीलाल अब पछताते हुए कह रहे हैं कि उन्हें क्या मालूम था कि टोकने पर बेटियों को इतना बुरा लगेगा कि वे खुदकुशी कर लेंगी. वे दोनों पढ़ने में काफी होशियार थीं, इसलिए वे उन की बेहतरी के लिए चाहते थे कि वे लड़कों से दोस्ती कर घूमनेफिरने के चक्कर में अपना वक्त बरबाद न करें.
एक और हादसा आयागया हो गया लेकिन पीछे कई सवाल छोड़ गया कि लड़कियों को लड़कों से दोस्ती करनी चाहिए या नहीं, और इस पर घर वालों को एतराज जताना चाहिए या नहीं?
बौयफ्रैंड बनाएं लेकिन….
लड़कियां बौयफ्रैंड बनाएं, यह कतई हर्ज की बात नहीं. हर्ज की बात है इस दोस्ती को घरवालों से छिपाना और दोस्तों से चोरीछिपे वक्तबेवक्त मिलना. कम उम्र लड़कियों को इतना सम झदार नहीं कहा जा सकता कि वे अपने अच्छेबुरे का फैसला खुद कर सकें. इसलिए बेहतर है कि वे लड़कों से अपनी दोस्ती को छिपाएं नहीं और हिम्मत करते हुए मांबाप को बता दें. नाराज वे इस के बाद भी हो सकते हैं लेकिन इस से लड़कियों के मन का डर मिट जाएगा. मुमकिन यह भी है कि मांबाप दोस्ती पर एतराज न जताते उसे अच्छे ढंग से ले लें.
जब लड़कियां चोरीछिपे बौयफ्रैंड से मिलती हैं तो उन के बहकने के आसार बढ़ जाते हैं. कई दफा वे जज्बात में बह कर, खवाबों में डूबते अपना सबकुछ बौयफ्रैंड को सौंप देती हैं यानी जिस्मानी संबंध बना बैठती हैं जो अकसर उन्हीं के लिए नुकसानदेह साबित होते हैं. इसलिए अकेले में बौयफ्रैंड से चोरीछिपे मिलने से तो बेहतर है कि घर वालों के सामने मिला जाए.
इस पर मांबाप एतराज जताएं तो लड़कियों को चाहिए कि वे मांबाप को बताएंसम झाएं कि यह सिर्फ दोस्ती है जिस में ऐसा वैसा कुछ नहीं है जैसा कि वे सोचसोच कर डर रहे हैं. इस से तय है कि वाकई मांबाप का डर और चिंता कम होगी.
बौयफ्रैंड से आप का अकेले में ज्यादा घूमनाफिरना और मिलना कई दुश्वारियों की वजह बन जाता है, खासतौर से छोटी जगहों में जहां लोगों की निगाहें सीसीटीवी कैमरों की तरह लड़कियों पर लगी होती हैं. अगर लड़कियां मांबाप को भरोसे में ले लेंगी तो इन के मुंह बंद हो जाएंगे. लेकिन चिंता और अफसोस की बात यह है कि लड़कियां बताती ही नहीं, तो मांबाप को गुस्सा आना कुदरती बात है.
मांबाप भी सोचें
आजकल लड़केलड़कियों की दोस्ती वक्त और उम्र की जरूरत हो चली है और यह जरूरी नहीं कि इस दोस्ती में कोई गड़बड़ बात हो. इसलिए उन्हें बेटियों के बौयफ्रैंड से बच्चों की ही तरह पेश आना चाहिए. इस से लड़कियों का डर कम होगा और वे बहकने से भी बची रहेंगी क्योंकि उन के साथ मांबाप का भरोसा होगा.
कभीकभार अगर लड़कियां दोस्तों के साथ घूमने जाने की बात कहें तो उन्हें एकदम से मना नहीं करना चाहिए. याद रखें यह उम्र बड़ी नाजुक होती है जिस में लड़कियों को लगता है कि उन की सम झ पर भरोसा न कर मांबाप उन के चालचलन पर शक कर रहे हैं, तो वे गुस्से में निधि और अनुष्का जैसा गलत कदम भी उठा बैठती हैं. याद रखें लड़कियों से ज्यादा सख्ती करना एक तरह से उन्हें चोरीछिपे बौयफ्रैंड बनाने के लिए उकसाने जैसी बात है.
मांबाप को चाहिए कि वे भी बेटी के बौयफ्रैंड से घुलेंमिलें, उन के घरपरिवार की जानकारी लें और यह साफ कह दें कि दोस्ती हर्ज की बात नहीं, हर्ज की बात है देररात तक अकेले में घूमनाफिरना और मिलना, जिस से दोनों की बदनामी होती है और ये बातें वे उन की अच्छाई और भलाई के लिए ही कह रहे हैं. उन्हें एहसास कराएं कि आप उन की दोस्ती के दुश्मन नहीं हैं, बल्कि हमदर्द हैं.
इस से लड़के के मन में अगर कोई खोट होगा या गलत इरादा पनप रहा होगा तो वह वक्त रहते होशियार हो जाएगा कि गर्लफ्रैंड के घर वालों को उन की दोस्ती की बात मालूम है और एक हद में ही उस से मिलनाजुलना है.
इस में कोई शक नहीं कि खासतौर से छोटी जगहों में समाज रूढि़यों और परंपरागत सोच का शिकार ज्यादा है. लेकिन अच्छी बात यह है कि माहौल धीरेधीरे बदल रहा है. ऐसे में अनुष्का और निधि जैसी लड़कियों की खुदकुशी की नासम झी और बुजदिली इस माहौल को सुधरने से रोकती ही है.
लड़कियों और लड़कों दोनों को चाहिए कि वे दोस्ती की हदें तय करते उन्हीं में रहें और अगर अपनी जगह ठीक हैं तो किसी से डरें नहीं. लेकिन, ऐसा तभी मुमकिन है जब वे चोरीछिपे लंबे वक्त के लिए न मिलें और सैक्स संबंध कायम न करें.
दोस्ती बढ़ती है तो प्यार भी हो सकता है, यह भी कतई हर्ज की बात नहीं लेकिन इसे भी छिप कर किया जाएगा तो तय है वह गलत ही कहलाएगा और दोनों की मंशा को भी कठघरे में खड़ा करेगा. इसलिए, दोस्ती और प्यार से पहले एकदूसरे को हर लैवल पर खूब सम झ लें, फिर जिंदगी का कोई फैसला लें लेकिन अगर वह खुदकुशी होगा तो आप ही अपनेआप को गलत साबित करेंगे.